गाय को माता क्यों कहा जाता है ?

गाय को माता क्यों कहा जाता है ?

गाय को माता क्यों कहा जाता है-हम आपको यह बताना चाहेंगे कि अन्य पशु दुग्ध देते है और गौमाता “अमृत” देती हैं और उनके अमृत की तुलना पशुओ के दुग्ध से न करें। गाय को प्राचीनकाल से ही माता का स्थान दिया गया है उसके मुख्य कारणों का संक्षिप्त वर्णन यहां पर किया गया है।

गौमाता के विषय मे धार्मिक वर्णन

शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तो सर्वप्रथम गौ माता ही पृथ्वी पर आईं थी। दोनो सींग के निचले भाग में भगवान विष्णु जी और भगवान ब्रह्मा जी और सींग के मध्य में भगवान शिवजी और ललाट में माता गौरी का वास माना जाता है नसिका में भगवान कार्तिकेय का निवास है।

गौ पालन से सम्बंधित विभिन्न उपाधियां

ये सारी उपाधियां जहां व्यक्ति की आर्थिक संपन्नता की प्रतीक है, वहीं इस बात को भी स्पष्ट करती हैं कि प्राचीन काल में गायें ही हमारी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी।

गोपाल:- जो सदैव झुंड में गौओं का पालन करते हैं, गौ से ही अपनी आजीविका चलाते हैं, उनको गोपाल कहा जाता था ।
नन्द :- जो सहायक ग्वालों के साथ नौ लक्ष् गौ का पालन करे।
उपनन्द :- पांच लक्ष् गौ को पाले वह उपनंद कहलाता है।
वृषभानु :- जो दस लक्ष् गौओं का पालन करे उसे वृषभानु कहा जाता है ।
वृषभानुवर:- जिसके घर में 50 लक्ष् गायें पाली जाएं उसे वृषभानुवर कहा जाता है।
नन्दराज :- जिसके घर में एक करोड़ गायों का संरक्षण हो उसे नंदराज कहते हैं।
गौमाता के विषय मे महत्वपूर्ण भूमिका

गौ की श्वासों के द्वारा किसी भी स्थल की नकारात्मक ऊर्जा को जान लेती हैं और वो जहां बैठती है वहां सम्पूर्ण वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण कर देती हैं। सभी पशुओ में मात्र गाय ही ऐसा पशु है जो “मां” शब्द का उच्चारण करता है, अतः मां शब्द की उत्पत्ति भी गौवंश से हुई मानी जाती है।

गौ को माता मानने के मुख्य तथ्य

आयुर्वेद के अनुसार भी मातृदुग्ध के उपलब्ध न होने पर बालक के लिए गौदुग्ध सर्वोत्तम माना जाता है, इस दुग्ध के सेवन से बालक शांत प्रकृति का मनुष्य बनता है अतः गौ को माता का स्थान दिया गया है। प्राचीन काल में अकाल पडना सामान्य सी बात थी, यदि किसी घर मे गौमाता होती थी तभी वहाँ के बालक जीवित रहते थे क्योंकि गौदुग्ध से उन्हें पोषित किया जाता था। प्रत्येक भारतीय कभी न कभी किसी न किसी रूप में भोज्य पदार्थ और पोषण के लिए गौदुग्ध पर निर्भर रहा है अतः गौदुग्ध बहुत पवित्र माना जाता है क्योंकि ये मानव जीवन को पोषण देता हैं।

गौ से प्राप्त होने वाले उपयोगी पदार्थ

गौ से पंचगव्य की प्राप्ति होती है इनके गोबर से उपले बना कर ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं गोबर को मिट्टी के साथ मिला कर ग्राम के घरों की धरती पर लीप दिया जाता ताज गौमूत्र रोगाणुनाशक माना जाता है इसे अनेको औषधियों में उपयोग किया जाता है। हवन के लिये धरती को शुद्ध करने के लिए गौबर और गोमूत्र का उपयोग किया जाता है। गौ दुग्ध उससे बना दधि और उससे प्राप्त नवनीत और उससे निकला गौघृत अत्यधिकः शुद्ध माना जाता है इस से हवन में आहुति भी दी जाती है, इन पदार्थों को पंचामृत के रूप में मुख्यतः प्रयुक्त किया जाता है। गौ के पालन से दुर्बल भी हष्ट पुष्ट और श्रीहीन भी सुश्रीक, सुंदर, शोभायमान हो जाते हैं , गौ को मनुष्य अपना धन मानता था, अतः उसे गौधन भी कहा जाता था।

गौमाता शांति और धैर्य की मूर्ति मानी जाती हैं

गौमाता शांति और धैर्य की मूर्ति मानी जाती हैं, वो तभी किसी पर सींग से आक्रमण करती है जब उनका बछड़ा कष्ट में आया समझेंगी या उन्हें अकारण कष्ट पहुँचाया जाए। गौ में मनुष्य के भाव या कठिनाई को ज्ञात करने की क्षमता होती है वो उसके पालक के कष्ट में होने पर अश्रु भी बहाने लगती है। गौ कभी भी बालको को कष्ट नही पहुँचाती है उसके सींग से आज तक कभी भी किसी नवजात को कोई हानि नही हुई है। प्राचीन धर्मग्रन्थों में लिखा है कि जिस दिन गौ संसार से समाप्त हो जाएंगी उसी दिन सृष्टि का अंत हो जाएगा.

भारतीय संस्कृति में गाय का बेहद उच्च स्थान है,इसे माता और कामधेनु कहा गया है, इसका दुग्ध बालको के लिए बहुत पौष्टिक , लाभदायक और बुद्धि के विकास में महत्वपूर्ण भी। * माता – अर्थात जीवन देने वाली और प्राणों की रक्षा करने वाली, जन्मदात्री माता के पश्चात बालक/ मनुष्य जिसका दूध पीकर जीवन का रक्षण करता है ।

 

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